कवयित्री_कुसुम_लता_जोशी की कविता :जपो री रसने गोबिंद गोबिंद
कवयित्री_कुसुम_लता_जोशी की कविता :जपो री रसने गोबिंद गोबिंद
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
संसार रूपी मकर से बचाए।
भव सागर से पार लगाए।
आशा निराशा के द्वंद्व हटाए।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
हटने लगे जब तारकाएं।
भोर का सूरज जब मुंह दिखाए।
मंदिर के घंटे जब टनटनाएं।AD
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
घर घर में भोजन रंधने लगे जब
थाली में व्यंजन सधने लगे जब
बाल गोपाल को भोग लगे जब
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
कर्म प्रधान जगत की यह माया।
घर से निकल कर काम को आया।
हृदय में हरि का भजन गुनगुनाया।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गौ धूलि बेला में घर वापस आए।
पेड़ो में खग-विहग लौट जाएं।
तुलसी में सांध्य दीपक जलाकर।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
बढ़ने लगे जब तमस का प्रभाव
खोने लगे जब समत्व का भाव
होने लगे सद्गुणों का अभाव
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
सुख में भी सुमिरण दुःख में भी सुमिरण
उत्थान में सुमिरण, पतन में भी सुमिरण ।
जन्म मे सुमिरण, मरण में भी सुमिरण
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोविन्द गोविन्द गोविन्द गोविन्द
आनंदकंद चिदानंद गोविंद।
सुख में भी सुमिरण दुःख में भी सुमिरण
उत्थान में सुमिरण, पतन में भी सुमिरण ।
जन्म मे सुमिरण, मरण में भी सुमिरण
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोविन्द गोविन्द गोविन्द गोविन्द
आनंदकंद चिदानंद गोविंद।
राधाहृदयनाथ गोविंद गोविंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद।
गोबिंद गोबिंद गोबिंद गोबिंद॥
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद।
जपो री रसने गोबिंद गोबिंद ।।
मौलिक रचना : कवयित्री_कुसुम_लता_जोशी
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