रँग जाती एक ऋतु
1 .हँसते-खिलखिलाते रंग-बिरंगे फूल क्यारी में देखकर
जी तृप्त' हो गया ।
नथुनों से प्राणों तक खिंच गई
गंध की लकीर-सी
आँखों में हो गई रंगों की बरसात
अनायास कह उठा
वाह
धन्य है वसंत ऋतु !
2.लौटने को पैर ज्यों बढ़ाए तो
क्यारी के कोने में दुबका
एक नन्हा फूल अचानक बोल पड़ा
सुनो,
एक छोटा-सा सत्य तुम्हें सौंपता हूँ
धन्य है वसंत ऋतु, ठीक है!
पर उसकी धन्यता उसकी कमाई नहीं
वह हमने रची है,
हमने !
यानी मैंने
3.मुझ जैसे मेरे अनगिनत साथियों ने
जिन्होंने इस क्यारी में अपने-अपने ठाँव पर
धूप और बरसात,
जाड़ा और पाला झेल
सूरज को तपा है पूरी आयु एक पाँव पर ।
तुमने ऋतु को बखाना ,
पर क्या कभी पलभर भी
तुम उस लौ को भी देख सके
4. जिसके बल
मैंने और इसने और उसने
यानी मेरे एक-एक साथी ने
मिट्टी का अँधेरा फोड़ सूरज से आँखें मिलाई हैं ?
उसे यदि जानते तो तुमसे भी
रँग जाती एक ऋतु ।
-भारतभूषण अग्रवाल
काव्यांश1: हँसते-खिलखिलाते रंग-बिरंगे……………………………………..धन्य है वसंत ऋतु!
भावार्थ: प्रस्तुत पंक्तियाँ “रंग जाती एक ऋतु” कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता कवि भारत भूषण अग्रवाल जी हैं । इन पंक्तियों के माध्यम से कवि फूल ओर वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहते हैं कि क्यारी में कितने सुन्दर- सुन्दर फूल खिले हैं, रंग-बिरंगे इन सुन्दर हँसते हुए फूलों को देखकर मन में आनंद की अनुभूति हो रही है। लग रहा है जैसे इसकी सुगन्ध एक लकीर खींचते हुए नाक से होकर सीधे मन के भीतर चली गई हों। रंग बिरंंगे फूल देख कर महसूस हो रहा था मानो फूलों की भी बर्षा हो रही है। वसंत की सुंदरता को यूँहजार ही कहते हैं कि वाह! धन्य है वंसत ऋतु जो इतना सुहावनी है।
काव्यांश 2: लौटने को पैर ज्यों बढ़ाए तो....................................................हमने! यानी मैंने।
भावार्थ: प्रस्तुत पंक्तियाँ “रंग जाती एक ऋतु” कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता कवि भारत भूषण अग्रवाल जी हैं । इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने फूल और वसंत ऋतु का वर्णन किया है। जब कवि वसंत ऋतु की तारीफ करते हैं ओर वापस जाने के लिए जेसे ही पैर उठाते हैं, तभी क्यारी का एक नन्हा सा फूल कवि को कहता है सुनो एक छोटी सी सच्चाई तुम्हें बताता हूँ। तुम वंसत ऋतु की तारीफ कर रहे हो कि वो धन्य है, वो सब तो ठीक है लेकिन यह धन्यता उसकी खुद की मेहनत नहीं है, यह सुन्दरता और खुशबू हमने रची है यानि कि मैंने रची है।
काव्यांश 3: मेरे अनेक अनगिनत साथियों ने.............................................देख सके।.
भावार्थ: प्रस्तुत पंक्तियाँ रंग जाती एक ऋतु कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता कवि भारत भूषण अग्रवाल जी हैं। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने फूल और वसंत ऋतु का वर्णन किया है। नन्हा फूल कवि को कहता है कि वसन्त ऋतु की सारी सुंदरता हमने रची है, अर्थात मुझ जैसे अनेक कितने ही नन्हे-नन्हें फूल हैं जो इस क्यारी में अपने स्थान में रहकर धूप, बरसात, ठण्ड और ठंडी से पड़ने वाले पाले को झेलते हैं। उस सूरज की भीषण गर्मी को सहकर हमने पूरा जीवन इस क्यारी में बिताया है एक ही पाँव में खड़े होकर अर्थात जड़ के सहारे खड़े हो कर अपनी पूरी उम्र बिताई है।अगर तुम वसंत ऋतु आने के पीछे हमारी इस मेहनत और बलिदान को जान लेते। ।तुम आकर उस वसंत ऋतु का बखान कर रहे हो।किंतु तुमने कभी हमारे बारे में नहीं सोचा, हमारी मेहनत और परिश्रम को कभी नहीं समझा।
काव्यांश 4: जिसके बल....................................... रंग जाती एक ऋतु।
भावार्थ प्रस्तुत पंक्तियाँ रंग जाती एक ऋतु कविता से उद्धृत है, जिसके रचयिता कवि भारत भूषण अग्रवाल जी हैं। । इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने फूल और वसंत ऋतु का वर्णन किया है। नन्हा सा फूल कवि को अपनी जीवन के संघर्ष को बताते हुए आगे कहता है कि क्या तुम्हें पता है मैं और मेरे सभी साथी एक रोशनी की तलाश में धरती का अंधेरा चिर कर अंकुरित होते हैं और बाहर निकलते हैं और उस तपते सूरज से सामना करके संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते हैं। अगर तुम लोग भी उस संघर्ष और परिश्रम को समझ पाते तो तुम से भी एक नई ऋतु की शुरुआत हो जाती, एक ऋतु तुम्हारे रंग से भी रंग जाती।
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